Nidhi Saxena

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मां का वात्सल्य (ममता)


प्रेम , स्नेह , वात्सल्य ,और कितने नामो से तुझे बुलाऊं मैं मां ❣️❣️❣️❣️❣️
मां तुम बहुत याद आती हो ।
लेकिन क्या करूं मैं ही नही आ पाती हूं ।
मां तुम कहती हो मैं अब वहां नही आती ।
कैसे आऊं मैं मां क्योंकि अब कोई वहां ये नही कहता अब कब आएगी तू ।
मां अब वो आंगन अपना नही लगता ।
मां जब वहां मैं आती हूं और रसोई में तुम्हे ना पाती हूं ,
तब मेरा खाना खाने का मन नहीं करता ,
क्योंकि कोई वहां ये नही पूछता बता क्या खायेगी।
खाना तो मैं यहां भी खाती हूं, लेकिन मां यहां भी कोई ये नही कहता दो चम्मच घी और डाल ले सेहत अच्छी रहेगी ।
मां कैसे आऊं मैं क्योंकि वहां अब कोई ये नही कहता अपने कपड़े दे दे मैं धो देती हूं ।
मां कैसे आऊं अब वहां के आंगन में तेरी पायल की छुनछुन और तेरी चूड़ी की खनक नही सुनाई देती ।
कैसे आऊं मां मैं वहां अब मुझसे तेरा एक खाट पर बैठे रहना नही देखा जाता।
कैसे आऊं मैं वहां मां , जब तुम गले लगाती हो , तब तुम्हारा कांपता शरीर नही देखा जाता ।
मां मुझसे अब तेरे चेहरे की झुर्रियां नहीं देखी जाती ।
मां कैसे आऊं वहां ।
मां तेरी ममता की छांव में मै अब बैठना चाहती हूं ।
मां मैं तेरे से सारी बात करना चाहती हूं ।
मां तेरी गोद में सोना चाहती हूं ।
मां तेरे हाथ का खाना खाना चाहती हूं ।
लेकिन कैसे आऊं मैं मां , कैसे आऊं ।
अब तुम्हारा ये हाल नही देखा जाता ।
मां बहुत थक गई हूं ।
मुझे अपनी पहले वाली थोड़ी ममता देदो।
पहले जैसी हो जाओ ना मां।
मैं तुम्हे ऐसे नही देख पाती । मां 
❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️
      नीर (निधि सक्सैना)✍️


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4 Comments

Gunjan Kamal

03-Dec-2022 10:25 AM

बहुत खूब

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Sachin dev

03-Dec-2022 08:02 AM

बहुत खूब

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Mahendra Bhatt

03-Dec-2022 07:49 AM

शानदार

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